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2 Samuel 19

:
Hindi - CLBSI
1 किसी ने योआब को यह बात बताई, ‘महाराज अबशालोम के लिए रो रहे हैं। वह उसके लिए शोक मना रहे हैं।’
2 अत: युद्ध में प्राप्‍त विजय उस दिन सेना के लिए शोक में बदल गई। सैनिकों ने सुना, ‘महाराज अपने पुत्र के लिए दु:खी हैं।’
3 अत: उस दिन सैनिकों ने नगर में ऐसे मुँह चुराकर प्रवेश किया जैसे युद्ध से भागकर आए हुए भगोड़े मुँह चुराते हैं।
4 राजा मुँह ढककर उच्‍च स्‍वर में चिल्‍लाता रहा, ‘ओ मेरे बेटे अबशालोम! मेरे बेटे अबशालोम! मेरे बेटे!’
5 तब योआब राजा के पास महल में आया। उसने कहा, ‘महाराज, आज आपने अपने सैनिकों का मुँह शर्म से काला कर दिया, जिन्‍होंने आज आपके प्राण, आपके पुत्र-पुत्रियों के प्राण, आपकी पत्‍नियों और रखैलों के प्राण बचाए।
6 आप उनसे प्रेम करते हैं, जो आप से घृणा करते हैं। पर आप उनसे घृणा करते हैं, जो आपसे प्रेम करते हैं। आज आपने यह बात स्‍पष्‍ट कर दी कि आपके लिए सेना-नायकों और सैनिकों का कोई महत्‍व नहीं है। आज मुझे ज्ञात हुआ कि यदि अबशालोम आज जीवित होता और हम सब मर गए होते तो आप प्रसन्न होते।
7 अब आप उठिए! महल से बाहर निकलिए और अपने सैनिकों से सहृदयता से बात कीजिए। प्रभु की सौगन्‍ध! यदि आप महल से बाहर नहीं निकलेंगे तो आज रात आपके साथ एक भी सैनिक नहीं रह जाएगा। बचपन से आज तक आप पर जितनी विपत्तियाँ आई हैं, उन सबसे यह विपत्ति आपके लिए असहनीय होगी।’
8 अत: राजा उठा। उसने नगर-द्वार पर अपना आसन ग्रहण किया। सैनिकों को यह समाचार मिला, ‘महाराज, नगर-द्वार पर विराजमान हैं।’ अत: सैनिक राजा के सम्‍मुख एकत्र हुए। इस्राएली सैनिक अपने-अपने घर को भाग गए थे।
9 इस्राएल प्रदेश के सब कुल लड़-झगड़ रहे थे। वे यह कहते थे, ‘राजा दाऊद ने हमें शत्रुओं के हाथ से मुक्‍त किया था। उन्‍होंने हमें पलिश्‍ती जाति के हाथ से छुड़ाया था। अब वह अबशालोम के कारण देश से भाग गए।
10 किन्‍तु अब अबशालोम, जिनको हमने अपना राजा अभिषिक्‍त किया था, युद्ध में मारे गए। अब हम राजा दाऊद को लौटा लाने के विषय में चुप क्‍यों हैं?’
11 राजा दाऊद ने पुरोहित सादोक और एबयातर को यह सन्‍देश भेजा, ‘यहूदा प्रदेश के धर्मवृद्धों से यह कहो: “तुम राजा को उसके राजमहल में वापस लाने में सबसे पीछे क्‍यों रहना चाहते हो? इस्राएल प्रदेश से राजा के पास सन्‍देश गया है।
12 तुम तो मेरे भाई-बन्‍धु हो। तुम मेरी ही हड्डी और मांस हो। तब तुम मुझे, अपने राजा को, वापस बुलाने में सबसे पीछे क्‍यों रहना चाहते हो?”
13 तुम अमासा से यह कहना, “क्‍या तू मेरी ही हड्डी और मांस नहीं है? यदि अब मैं तुझे योआब के स्‍थान पर सेनापति नहीं नियुक्‍त करूँ तो परमेश्‍वर मुझे कठोर से कठोर दण्‍ड दे।”
14 यों दाऊद ने यहूदा प्रदेश के सब लोगों का हृदय अपनी ओर खींच लिया। उन्‍होंने एक मत होकर राजा दाऊद के पास सन्‍देश भेजा, ‘कृपया, आप तथा आपके सब सेवक लौट आइए।’
15 अत: राजा दाऊद लौटा। वह यर्दन नदी के तट पर पहुँचा। यहूदा प्रदेश के निवासी राजा से भेंट करने, और उसको यर्दन नदी के इस पार लाने के लिए गिलगाल नगर में आए।
16 बिन्‍यामिन कुल के गेरा के पुत्र शिमई ने जो बहूरीम नगर में रहता था, अविलम्‍ब तैयारी की। वह यहूदा प्रदेश के लोगों के साथ राजा दाऊद से भेंट करने आया।
17 उसके साथ बिन्‍यामिन कुल के एक हजार पुरुष थे। शाऊल के राजपरिवार का सेवक सीबा भी अपने पन्‍द्रह पुत्रों और बीस सेवकों के साथ, राजा दाऊद से पहले यर्दन नदी पर पहुँच गया।
18 वे राजा की दृष्‍टि में भला कार्य करने के उद्देश्‍य से, राजपरिवार को नदी पार करा रहे थे। जब राजा नदी को पार करने लगा तब गेरा का पुत्र शिमई राजा के पैरों पर गिरा।
19 उसने राजा से कहा, ‘स्‍वामी, मुझ पर अधर्म का अभियोग मत लगाना। जिस दिन महाराज, मेरे स्‍वामी यरूशलेम से जा रहे थे तब मैंने, आपके सेवक ने जो अपराध किया था, उसका आप स्‍मरण नहीं कीजिए। कृपया उसकी ओर ध्‍यान भी मत दीजिए।
20 आपका सेवक, मैं यह स्‍वीकार करता हूँ कि मैंने पाप किया था। महाराज, देखिए, मैं यूसुफ कुल का पहला व्यक्‍ति हूँ, जो अपने महाराज और स्‍वामी से भेंट करने के लिए आया।’
21 सरूयाह के पुत्र अबीशय ने उत्तर दिया, ‘शिमई ने प्रभु के अभिषिक्‍त राजा को अपशब्‍द कहे थे, इसलिए उसे इस अपराध के बदले में निश्‍चय ही मृत्‍यु-दण्‍ड मिलना चाहिए।’
22 दाऊद ने कहा, ‘सरूयाह के पुत्रो, मेरे और तुम्‍हारे विचारों में अन्‍तर है। आज तुम मेरे विरोधी मत बनो। आज क्‍या इस्राएल में किसी को मृत्‍यु-दण्‍ड दिया जा सकता है? आज मैं निश्‍चयपूर्वक जानता हूँ कि मैं इस्राएल का राजा हूँ।’
23 तत्‍पश्‍चात् राजा दाऊद ने शिमई ने कहा, ‘तुम्‍हें मृत्‍यु-दण्‍ड नहीं दिया जाएगा।’ राजा ने उससे शपथ खाई।
24 राजा शाऊल का पौत्र मपीबोशेत राजा दाऊद से भेंट करने के लिए आया। जिस दिन राजा दाऊद ने यरूशलेम से प्रस्‍थान किया था, उस दिन से आज तक, जब राजा सकुशल लौट आया, उसने अपने हाथ-पैर की सफाई नहीं की थी। उसने अपनी दाढ़ी बनाई थी, और अपने वस्‍त्र धोए थे।
25 जब वह यरूशलेम नगर से नीचे उतरकर राजा से मिलने आया, तब राजा ने उससे पूछा, ‘मपीबोशेत, तू मेरे साथ क्‍यों नहीं गया था?’
26 उसने बताया, ‘महाराज, मेरे सेवक ने मुझे धोखा दिया था। मैंने अपने सेवक को यह आदेश दिया था कि मेरे लिए गधे पर काठी कस। मैं उस पर सवार होकर राजा के साथ जाऊंगा। महाराज, आप जानते हैं कि मैं आपका सेवक लंगड़ा हूँ।
27 परन्‍तु मेरे सेवक ने महाराज से, मेरे स्‍वामी से, मेरी चुगली की। महाराज, मेरे स्‍वामी, आप परमेश्‍वर के दूत के सदृश हैं। जो कार्य आपको अपनी दृष्‍टि में भला लगे, वही मेरे साथ कीजिए।
28 मेरे पिता के परिवार के सब पुरुष, मेरे स्‍वामी के हाथ से मृत्‍यु-दण्‍ड पाने के योग्‍य थे। परन्‍तु महाराज ने मुझे, अपने सेवक को अपनी मेज पर भोजन करने का सम्‍मान प्रदान किया था। तब इससे अधिक मुझे क्‍या न्‍यायोचित अधिकार चाहिए कि मैं महाराज की दुहाई दूँ?’
29 राजा ने उससे कहा, ‘तू ये बातें फिर क्‍यों कह रहा है? मैंने यह निश्‍चय किया है: तू और सीबा अपनी भू-सम्‍पत्ति को परस्‍पर बांट लो।’
30 परन्‍तु मपीबोशेत ने राजा से कहा, ‘सीबा ही सब भू-सम्‍पत्ति ले ले; क्‍योंकि महाराज मेरे स्‍वामी राजमहल में सकुशल लौट आए हैं।’
31 गिलआद प्रदेश का रहने वाला बर्जिल्‍लय रोगलीम नगर से आया। वह राजा को यर्दन नदी पार कराने के लिए यर्दन नदी के उस पार आया।
32 बर्जिल्‍लय बहुत वृद्ध था। उसकी उम्र अस्‍सी वर्ष की थी। जब राजा दाऊद महनइम नगर में था, तब बर्जिल्‍लय ने उसकी भोजन-व्‍यवस्‍था की थी; क्‍योंकि वह अत्‍यन्‍त समृद्ध था।
33 राजा ने बर्जिल्‍लय से कहा, ‘आप मेरे साथ नदी के उस पार चलिए। मैं आपकी वृद्धावस्‍था के लिए यरूशलेम में अपने साथ आपकी भोजन-व्‍यवस्‍था करूँगा।’
34 बर्जिल्‍लय ने राजा को उत्तर दिया, ‘मुझे अब कितने दिन और जीवित रहना है कि मैं महाराज के साथ यरूशलेम जाऊं?
35 आज मैं अस्‍सी वर्ष का हूँ। क्‍या मैं इस उम्र में भले और बुरे की पहचान कर सकता हूँ? अब क्‍या मुझमें खाने-पीने की रुचि रह गई है? अब क्‍या मैं गायक-गायिकाओं का मधुर गीत सुन सकता हूँ? ऐसी स्‍थिति में आपका यह सेवक अपने स्‍वामी पर, महाराज पर भार क्‍यों बने?
36 आपका यह सेवक महाराज के साथ यर्दन नदी के उस पार तक जाएगा। महाराज मुझे इतना बड़ा पुरस्‍कार क्‍यों देना चाहते हैं?
37 अपने सेवक को लौटने की अनुमति दीजिए कि वह अपने ही नगर में मरे और अपने माता-पिता की कबर के पास गाड़ा जाए। हाँ, यह आपका सेवक, किमहाम आपकी सेवा में प्रस्‍तुत है। महाराज इसे अपने साथ जाने की अनुमति दीजिए। तब आपकी दृष्‍टि में जो भला हो वही इसके साथ कीजिए।’
38 राजा ने उत्तर दिया, ‘किमहाम मेरे साथ जाएगा। जो आपकी दृष्‍टि में उचित है, वही मैं इसके लिए करूँगा। इसके अतिरिक्‍त जो कुछ आप मुझसे माँगेंगे, वह मैं आपके लिए करूँगा।’
39 तत्‍पश्‍चात् सब लोगों ने यर्दन नदी पार की। राजा दाऊद भी उस पार गया। राजा ने बर्जिल्‍लय का चुम्‍बन लिया, और उसे आशीर्वाद दिया। तब बर्जिल्‍लय अपने निवास-स्‍थान को लौट गया।
40 राजा दाऊद ने नदी पार करने के बाद गिलगाल नगर में प्रवेश किया। किमहाम भी उसके साथ गया। यहूदा प्रदेश की सब जनता तथा इस्राएल की आधी जनता राजा के साथ गई।
41 तब इस्राएल के लोग राजा के पास आए। उन्‍होंने राजा से यह कहा, ‘यहूदा प्रदेश के हमारे जाति-भाई आपको चुराकर क्‍यों ले गए? क्‍यों वे आपको, आपके राज-परिवार और आपके सैनिकों को यर्दन नदी के पार ले आए?’
42 यहूदा प्रदेश के सब निवासियों ने इस्राएल प्रदेश के निवासियों से कहा, ‘महाराज हमारे निकटतम सम्‍बन्‍धी हैं। तब तुम लोग इस बात के कारण क्‍यों नाराज हो? क्‍या हमने महाराज का कुछ खाया-पिया है? या उन्‍होंने हमें कुछ दान दिया है?’
43 इस्राएल प्रदेश के निवासियों ने यहूदा प्रदेश के निवासियों को उत्तर दिया, ‘महाराज के राज्‍य में हमारे दस भाग हैं। इसके अतिरिक्‍त हम दस कुल तुमसे बड़े हैं। फिर तुमने हमारा तिरस्‍कार क्‍यों किया? अपने राजा को वापस लाने के लिए क्‍या सर्वप्रथम हमने बात नहीं की थी?’ परन्‍तु यहूदा प्रदेश के निवासियों का तर्क इस्राएल प्रदेश के निवासियों के तर्क से अधिक प्रभावपूर्ण था।